Thursday, May 3, 2012

हे शिव तेरे चरणों पे मेरा हर कर्म अर्पण,




by : OM NAMAH SHIVAY on face book
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पार्वतीपति भगवन शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ, देवताओं के गुरु तथा श्रृष्टि के कारण स्वरुप परमेश्वर भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ, नागों को आभूषण के रूप में तथा हाथ में म्रिग्मुद्रा धारण करनेवाले एवं समस्त जीवों के गुरु - स्वामी भगवान शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ. सूर्य, चन्द्र और अग्निदेव को नेत्र रूप में धारण करनेवाले एवं भगवान् नारायण के परम प्रिय भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ. भक्त जनो को आश्रय देनेवाले - वरदानी कल्याण स्वरुप भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ. उसके लिए शिवजी भी उसके दर्शनों के लिए वैसे ही लालायित रहते हैं

हे शिव (परमपिता परमात्मा), मुझे यही वर (वरदान) दीजिए, कि मैं शुभ कार्यों को करने से कभी पीछे न हटूं, उन्हें कभी न टालूं... जब भी मैं शत्रु से लड़ने जाऊं, मेरे भीतर डर के लिए कोई स्थान न हो, और मुझमें इतना आत्म-विश्वास हो, कि मैं दृढ़ निश्चय के साथ जाकर युद्ध करूं, और जीतकर लौटूं... मैं अपने हृदय को सदा आप ही के गुण और अच्छाइयां सीखने का लालच देता रहूं... और जब मेरे जीवन के अंतिम दिन आ जाएं, तो मैं युद्धभूमि में जोश के साथ सच के लिए लड़ता हुआ मरूं...

नमन तुम्हे शिव ! जिसकी महिमा
अपरम्पार , अम्बर सा जो
पारदर्शी है , गुण सब जिस में
सृष्टि सृजन के ,
पालन और भंग करने के
विश्व अनेकों ! काश भक्ति ,
तीव्र भक्ति मेरे जीवन की
मिल जाए उस से, उस शिव से ,
स्वामी सबका हो कर भी जो परे स्वयं से .

जो शाश्वत स्वामी है सबका ,
जो सारे भ्रम का है हर्ता,
जिसका सबसे उत्कृष्ट प्रेम, प्रकट है,
सब नामों में बढकर नाम .
"महादेव, " जो सबका धाम !

पावन आलिंगन में जिसके प्रेम बरसता ,
दर्शाता अपने अंतर में , कि शक्ति ये
क्षीण मात्र और परिवर्तनीय .

निहित जहाँ अंधड़ अतीत के ,
संस्कार उद्वेलित शक्ति
तीव्र ,जल जैसे उमढाता लहरें;
जिसमे 'मैं' 'तू'द्वन्द उपजता
बढ़ता ,पलता ;उसे नमन ,
शिव में स्थित ,शांति प्रगाढ़ !

जहाँ बोध जनक - जन्यों का ,
शुचि विचार ,असीमित रूप ,
समाहित होते सत्य में ;मिट जाता
बोध अन्तः -बाह्य का -
प्राण वायु हो जाती शांत -
पूजूँ मैं उस 'हर' को,हरता जो
मन की गतिविधियाँ .शिव का स्वागत !

हर क्लेश और तम का नाशक ,
अभ्रक ज्योति, श्वेत ,व सुन्दर
श्वेत कमल के खिलने जैसा ,
अट्टहास से ज्ञान बिखेरे ;
जो निरत रहे आत्मध्यान में ,
दर्शन देता ह्रदय कमल में ,
राजहंस जो शांत झील का
मेरे मन की , रक्षक मेरा ,नमन है उसे !

वह जो पूर्ण अमंगल हर्त्ता ,
निष्कलंक करता युग युग को ;
दक्ष सुता ने दिया जिसे कर ;
जो है श्वेत कमलिनी सा मधु ,
सुन्दर ; सदा रहे तत्पर जो
प्राण त्यागने परहित प्रतिपल ,दृष्टि
निहित दुर्बल दरिद्र पर ;कंठ नील है
विष धारण से ;
उसे है नमन !

हे शिव तेरे चरणों पे मेरा हर कर्म अर्पण, — with Samriti Agarwal.

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